है ये कैसा अजिब सा आलम, जिससे है अंजान हम,
कल कुछ और थे आज कुछ और है हम...
क्युं दिल मेरा कुछ अलग से धडकना चाहता है?
क्युं ये पागल दिल उदासी मेह्सुस करना चाहता है?
क्युं हमारी ये जुल्फें, लहेराते हुए, रुठकर हमींसे
चाह्ती है संवरना कीसी अजनबी के प्यारसे?
क्युं ये आंखे तरस जाना चाह्ती है इन्तेझार करके?
क्युं ये नझरें भी मुड मुड के पीछे देखना चाहती है?
क्या हो गया है पांवको जो रुकरुक के चलना चाहते है?
क्युं ये बेला किसि पैडसे लिपट जाना चाहती है?
क्युं ये पलकें उठके झुक जाती है पर झुकके नहिं उठती?
क्युं ये निगाहें किसीके लिये राहमैं पथराना चाहती है?
आखिर किसका इन्तेझार है ये?
कौन है वो जिसकी जन्मों से तलाश है?
कौन है वो, जो नहिं है फिर भी इन्तेझार उसीका है?
नम्रता
१४-६-९०
6 comments:
saras chhe..ane amne aavi j rite rachanao no aaswad karvata rahejo
bahut hi bhav purn rachna hai aapki
ओह मेरी दीदी हिन्दी में भी अच्छा लीख्ती है
बेहद सुंदर
Kem Cho Sis? bahuj saras Rachna che aa to.. U r just gr8...Luvss...!
Wah namrita ji
aage bhee likhiye n'land me itanaa busy ho gaye kyaa.?
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